मेरी राय है सांप्रदायिक हिंसा, जिसकी बारे में, जिसकी बाबत, बहुत कुछ….. माने बहुत कुछ.. लिखा गया है, और अब तक तो ये स्थापित भी हो चुका है कि ये सब निहित स्वार्थ वाले प्रभुत्व शाली वर्ग का किया धरा होता है, ऐसे निहित स्वार्थ वालों के चेहरे तो बदलते हैं पर उनकी कार्रवाइयों का असर वही होता है, मौत, खून खराबा, हो हल्ला, सामाजिक सौहार्द में कमी….. फिर भी आज विशेषरूप से देखने में आ रहा है कि हम प्रबुद्ध जन, इन परिघटनाओं के लिए दूसरे संप्रदाय को ही दोषी ठहरा रहे हैं, कब जागेंगे हम, कब दोषियों को पहचानेंगे, कब तक उन्माद मै गलती करते रहेंगे, हाय क्या कभी हमारा देश फिर से स्वर्ग जैसा हो पाएगा!!!!!