नारी;
मत पूजो इन्हें!
हाड़ मांस की बनी,
बिल्कुल तुम्हारी ही तरह,
चैतन्यता में तुमसे
जरा भी कम नहीं है ये!
क्योंकि नहीं हैं ये मूर्तियां!
मूर्तियों की ही तो करते हो पूजा,
दुर्गा, काली, पार्वती, संतोषी, सीता….?
तुम्हारी
शारीरिक शक्ति में श्रेष्ठता?
अरे पूछ देखो,
अपनी सारी नस्लों से!
कैसी-कैसी आचार-संहिताओं,
स्मृतियों, शास्त्रों व उपनिषदों
की सहायता से,
इन्हें दबाया और मारा गया है!
इन्हें आदमी समझें बस!
अपने बराबर!
काफी होगा!
अपना रास्ता बनाना
आता है इन्हें!!!