लेख नहीं ये आंखों देखी, औ’ है भुगती बात, रहे संग परिवार के, रेल में हम दो रात!
सहयात्री कटनी में उतर के घर को धाए, अब आए कई बे टिकट औ’ देखें दाएं बांएं!
पहले को तो सच, टी टी ने ही था भेजा , “बस मुगलसराय तक!” कहते आया दूजा!
इनकार कड़क मेरा था दोनों भाग गए, पर नींद तोड़ दी, पूरी रात हम जगे रहे!
ऊपरी कमाई टी टी ने चाही तो क्यों? जल्दी से समृद्ध बनें, आवश्यक ज्यों!
‘जैसी करनी वैसी भरनी’ याद रहे तो कैसे? नंगी आंखें तो उल्टा देखें सारे जग में वैसे!
भ्रष्ट दिखे ना कहीं कष्ट में, मंत्री हो या नेता, फिर टी टी क्यों ना बने भ्रष्ट, क्यों मारा जाए सेंता!