‘पत्नी’, यानी उनकी,
मैनें तो की बड़ाई!
लिख ‘पत्नी के फायदे’
उनकी खूबियां गिनाई!!
सारी दूसरी पत्नियों नें (अफ़वा की मीटिंग में)
मुझे खूब खूब सराहा!
पर, मेरी पत्नी ने,
जानते हैं, क्या कहा?
कि हमसे उनका रिश्ता,
पतंग की डोर है,
और ये कि मेरे हाथ में,
उस डोर की छोर है!!
कहा, ‘डोर हो तो आज़ादी बेमानी’!
यानी… कि वह परतंत्र हैं..
मतलब लगाओ तो येऽऽ कि,
होना चाहतीं स्वतंत्र हैं!!
ऐसा मैनें कह क्या दिया कि,
घर में हुआ बवाल,
औ’ हालत ऐसी हुई क्या कहूं,
जीना हुआ मुहाल!!
घर में हमारे, ऊफ!
आ गई बड़ी सी आफत,
बचने को उठानी पड़ेगी अब,
न जाने कितनी जहमत!!
मेरी अपनी, खास अपनी, पत्नी,
हो गई बहुत हैं गरम,
चन्द्रमुखी टर्न्ड इन्टु ज्वालामुखी,
जरा भी ना रहा भरम!!
हम भी थोड़ा अकड़े तो,
घर में छिड़ी लड़ाई,
कुछ भी सोचें-करें हम,
विपरीत उन्हें दे दिखाई!!
ठंडे हुए और माफी मांगी,
पर ना दे उन्हें सुनाई,
संबंध पति पत्नी का नहीं अब,
हम नारी-पुरुष हैं भाई!
दो दर्शन दो नीति हैं घर में,
दो ही संतान बनाई,
वो जिसे अपनाएं चाहे,
चुप्पी में ही अपनी भलाई!!
काटा था पागल कुत्ते ने, जो
बनने चले थे कविराई!
अब आफ़त आई ऐसी है,
कि भूल गई कविताई!!!!