(बेटा– बेटी के नखरों से प्रभावित एक तुकबंदी, जो उनके बचपन में लिखी थी!)
क्यों मारें हमको पढा पढा?
क्यों चाहें बनाना और बड़ा?
क्या हम बच्चे ही नहीं भले?
क्या इन्हें और कोई नहीं मिले?
क्या खुद ये बच्चे नहीं रहे?
ये बड़े लोग!!
ये देर तलक सोने ना दें।
हर बात में जल्दी किया करें।
खाकर जाओ, लेकर भी जाओ, टिफिन!
हमेशा कहा करें।
हमारी समझें कभी नहीं,
ऊफ! ऊफ! हमेशा किया करें!
ये बड़े लोग!!
ये मस्ती करने कभी ना दें,
खेल कूद से भी रोका करें,
“फ़िल्म सीरियल मत देखो!”
बाहर घर से जाने ना दें,
हर दम पढ़ने को कहा करें,
ये बड़े लोग!!
खुद कहें, “काश होते और पढ़े!”
ये बिना पढ़े जब बने बड़े,
पढ़ लिख कर भी बनते बड़े!
फिर इतनी माथा पच्ची क्यों?
जब सब मिलता है पड़े पड़े!
ये बड़े लोग!!!
फिर पढ़ना कितना कठिन काम,
सर दर्द शुरू होता है राम,
ना काम करे मरहम न बाम,
दर्द – ए – सिर बनते यूं भी आम,
और करें चैन का काम तमाम,
ये सब करते हैं सरे आम!
ये बड़े लोग!!!!!!!
ये बड़े बड़े से नामी जन,
बचपन को जिया है भर भर मन,
लिंकन हो या आइंस्टाइन,
डार्विन हो या चैपलिन,
जे के राउलिंग, मर्लिन मुनरो,
हो जुकरबर्ग, माईकल जॉर्डन,
स्टीफेन किंग या स्टीव जॉब,
चर्चिल हो या एडिसन,
फेल हुए थे सब पहले,
बाद ही जाके किया था ‘कुछ’,
जिन्दगी को जिया ‘ऐज़ इट ईज’,
नंगा दौड़ा आर्केमिडीज़!
खुल कर जीना है बड़ी चीज,
ऐसा ही बोला एलेन पीज!
ऊफ! ऊफ! ऊफ!
सभी ने लिया जीवन को भोग,
ये बड़े लोग!!!!!!!!!
अब छोड़ो भी पीछा करना!
मूंछों को क्यों नीचा करना?
जीने दो हमको खुल के मस्त,
पढ़ा पढ़ा ना करो पस्त!
सोने दो हमको देर तलक,
खाने पर ना झपकाओ पलक!
जीने की है हमने ठानी,
करने दो हमको मनमानी,
हम करेंगे ना कोई गलत काम,
तुम्हें करेंगे नहीं बदनाम,
नीयत हमारी भांपो तुम,
मन के अंदर झांको तुम,
थोड़ी आजादी तो दे दो,
ओ बड़े लोग!!!!!!!!!!