हिन्दू धार्मिक वाङ्गमय मानव जीवन को चार आश्रमों में विभाजित करता है। जीवन-चर्या के सामान्य विधान इन सभी में कमो बेस समान हैं, परंतु हरेक के कुछ विशिष्ट विधान भी हैं। जैसे ब्रह्मचर्य में आत्मिक- मानसिक और शारीरिक शुचिता, विद्याध्ययन और गुरु के आश्रम में रहते हुए भिक्षाटन आदि पर ज्यादा जोर है तो गृहस्थाश्रम में समाज को आगे बढ़ाने के लिए विवाह, संतति निर्माण व उनके समुचित पालन पोषण और साथ ही सामाजिक संबंधों पर विशेष जोर होता है। व्यक्ति के जीवन में राजनीति का पदार्पण भी यहीं होता है। अब तक का सारा वैदिक साहित्य इस बात का साक्षी रहा है कि तब राजनीतिक कार्यों-व्यवहारों के विषय में ब्रह्मचारी और सन्यासी सलाह भले ही देते हों, आम तौर पर वह स्वयं राजनीति से विलग ही रहते थे।
गृहस्थाश्रम के पश्चात आदर्श रूप से वानप्रस्थ आश्रम प्रारंभ होता है जहां व्यक्ति गृहस्थी की मोह माया से पृथक हो या तो प्रकृति संवर्धन में योग देता है या समाज से व्यक्तिगत रूप से विरक्त होकर भी समाज के कल्याण के लिए परामर्शदाता का कार्य करता है।
इहलोक की माया से पृथक हो व्यक्ति अपने परलोक कि संवारने का कार्य जीवन के अंतिम आश्रम – संन्यास आश्रम में करता है। लेकिन वैदिक साहित्य में मनुष्य को बिल्कुल व्यक्तिवादी कभी भी नहीं होने दिया गया है, मानव मात्र के कल्याण के लिए नीति, विधान और आचार संहिता का निर्माण भी इसी आश्रम में लोगों ने किया है।
अब्राहम मैस्लो के आवश्यकता पदानुक्रम/पिरामिड का चरम – आत्म-प्राप्ति (सेल्फ ऐक़चुअलाइजेशन) इसीसे लिया गया लगता है। पता नहीं क्यों, पर यहां ऋषी वात्स्यायन के कामसूत्र की चर्चा समीचीन लगती है जिन्होंने वासना में स्वयं संलिप्त हुए बिना ही वयस्क जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण, सृजनात्मक और आनंददायक क्रिया – काम (सेक्स) के संबंध में अपना विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ – कामसूत्र – लिखा जो आज भी सम्बन्धित विषय पर अध्ययन और शोध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आधार है जिसकी नकल करके, मीमांसा करके या आधार बना कर आज अनेकानेक किताबें लोग लिख रहे हैं, ख्याति अर्जित कर रहे हैं।
वेद, पुराण, ब्राह्मण उपनिषद और शास्त्र, ही हिन्दू धर्म के आधार हैं, जहां धर्म की परिभाषा,”धारयिती ते धर्मः” से कि गई है, अर्थात, जिसे मनुष्य धारण करता है, या जिसने मनुष्य को धारण किया हुआ है। वृहद अर्थों में ज़ाहिर तौर पर यह वह जीवन शैली या पद्धति है जिसे मनुष्य ने धारण किया है या जिसने उसे धारण किया है।
क्षमा चाहूंगा, परंतु वर्तमान के अन्य किसी भी धर्म की तरह हिन्दू (सनातन) धर्म का कोई एक व्यक्ति प्रतिपादक नहीं है। यह सदियों के अनुभव से सीखी गई वह जीवन पद्धति है जिसे आल्प्स पर्वत श्रृंखला से अनेकानेक कारणों से पलायन करके सिंधु घाटी के पास बस जाने वाली मानव संतति ने क्रमश संकलित, संग्रहित, परिशोधित और परिमार्जित किया! और यह सब वे इस कारण कर सके क्योंकि उन्हें धरती के इस भाग पर जीवन यापन के संसाधन जुटाने की जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी और वे इस तरह का शोध कर सके जो मानव के कल्याण को समर्पित हो।
इस्लाम और ईसाई धर्म विरोध और हिंसा के गर्भ से पैदा हुआ है इसलिए उनमें असुरक्षा की भावना कूट कूट कर भरी है और इसीलिए वे अन्य धर्मों के प्रति हिंसा और वैर सिखाते हैं। इसीलिए ये दोनों अन्य धर्मालंबियों को धर्मांतरण के लिए येन केन प्रकारेण उकसाते, धमकाते और बहकाते हैं।